गुरुवार, 24 जुलाई 2014

मधु सिंह : हूँ -हाँ से काम अपना चलाने लगे है

            ( रीडिंग :थेम्स की घाटी से )
            

इस कदर लोग मुझको सताने लगे हैं 
हकीकत   भी  उनको  फ़साने  लगे हैं

रात-दिन बात करने से जो थकते न थे
अब  वो  हूँ- हाँ से काम  चलाने लगे हैं 

वो जो चेहरे थे जिन पर भरोसा किया 
उनको  अपनों के  चेहरे  बेगानें लगे हैं

मेरे ख्वाबों की दुनियाँ के जो किरदार थे 
वही   किरदार मुझको   रूलाने  लगे हैं

मैनें मोहब्बत भी की  है खरामे -खरामें
ये समझने  में  उनको  ज़माने लगे है

                        मधु "मुस्कान "

          
    





गुरुवार, 10 जुलाई 2014

मधु सिंह : कामना के पुष्प (थेम्स की घाटी,यू .के.से )



जब  गीत  मय   अस्तित्व  दोनों  के  मिलेंगें
सुरभित  कामना के  पुष्प  अधरों  पे खिलेंगें

नील    नभ     पर    चांदनी    इर्ष्या   करेगी
जब  बाहु- भुज में  आबद्ध  हम धू -धू जलेंगे

पहन   कुसुमों   के  बसन   जब   हम  हसेंगे 
नील नभ के  निर्मल  हृदय में हलचल करेंगे

जब  ले  विभा  की  ज्योति  हम  चंचल  बनेगें  
हिम शैल-शिखरों पर तुहिन कण चुम्बन करेंगे

रे दामिनी ! जिस  ठौर  हम आलिगन  करेंगे 
त्रिपथगा के पुण्य जल से देवगण तर्पण करेगे


                                     मधु "मुस्कान "