शुक्रवार, 31 मई 2013

मधु सिंह : ज़लील -सी गाली

    

            ज़लील -सी गाली 

                     (दुष्यन्त के नाम )
      
  लाखों   कटीली   झाड़ियाँ  , उग  गई  हैं जिश्म पर 
 तू  एक  ज़लील - सी  गाली  से   कम   हसींन  नहीं 

 इश्तिहारों  की  तरह   तुम  लटकी   हो   कील पर
तुझे  यकीन  नहीं  कि  तेरे पावों  तले  ज़मीन नहीं

सारे   ज़मीर  लुट    गये  ,  जिश्म   के    बाज़ार  में
आस्तीन  ही  तेरी  साँप  है,  अब  वो आस्तीन नहीं

काग़ज़  पे   ज़िन्दगी   की  जो   तस्बीर  उभरती  है
लगता  है   कि   तू   कमीनो  से   कम  कमीन नहीं

चुभ   गए   काँटें   घृणा  के  , पाकीजगी  के  वक्ष में 
तू , तेरी दुनियाँ, ईम़ा तेरा,दोज़ख से बेहतरीन  नहीं


                                                 मधुर "मुस्कान "




        
       

बुधवार, 29 मई 2013

मधु सिंह : बे-नकाब होने को है

     बे-नकाब होने को है
      
     सज़ा   बे- वफ़ाई   की   आता  होने  को  है
     शौके  -  फ़ितरत   की   कज़ा   होने  को है

    नरगिस   की   बेनूरी   सदा   देती  रह  गई
    जल्वये  -  नूरी    बे  -  नकाब   होने  को है

    नक्श   है   जिश्म  पे   लाखों   श्याह   दाग
    धड़  पेशवा  का  सर  से  अलग  होने को है 

    ख्वाबे -महफ़िल  रोज  सजती  है अँधेरे में
    सारी  दुनिया  को   अब  खबर  होने  को  है
   
    खोल  कर  सन्दूक पढ़ लिये  सारे खतों को
    डाकिये  को   अब  जल्द  सज़ा  होने  को है 

    बेशक सज़ा गुनहगारों को मिलनी चाहिए
   जल्द ही एक नाम फ़िर सुर्खी में होने को है

                                  मधु"मुस्कान"

       
  
  
  
        

    

रविवार, 26 मई 2013

मधु सिंह : इश्क की खुशबू

         इश्क की खुशबू


             तू  शौक  से   जी  ले  खिला  कर  फूल होठों पर 
             तुम्हारे   इश्क  की  खुशबू   निशानी  मांगती हैं 

             वो  तितली है  जो   बैठी तुम्हारे शुर्ख  होठों पर
             मोहब्बत  के   कशिश   की  कहानी   मांगती है

            मौज़े - दरिया  बन  परिन्दा चूम लेगी ओठ तेरे
            फज़ा में  कैद  हुश्ने-  ताबानी  जवानी मांगतीं हैं 

            हुश्न के आगोश  में  फड़फड़ाता फाख्ताये- दिल 
            तेरे शुर्ख  होठों से मोहब्बत  जाफ़रानी मांगती है

            मधुर मुश्कान के दीपक होठों पर जलाने के लिये
           आरज़ूएं  प्यार की  ख़ुदा  से   दीपदानी मांगतीं है 

         ताबानी -जगमगाहट

                                                 मधुर "मुस्कान "
            

शुक्रवार, 24 मई 2013

मधु सिंह : तेरा चाहने वाला

   
        तेरा चाहने वाला 



  हटा  पर्दा  तसब्बुर का ,तू देख ले उसकी तरफ़ 
  नज़र  आ  जायगा   तुझको  तेरा  चाहने  वाला 
  
  उसी  के  दिल का लहू दौड़  रहा  है तेरे दिल  में 
  मिल  जायगा  तेरे  दिल में,  तेरा  चाहने वाला

  है वही शक्श जो तुझको जुदा-जुदा सा लगता है
  है   कभी  न   जुदा   तुझसे   तेरा   चाहने वाला

  वो  ख़ुदा  न  सही, न सही,जरा तू पूछ  ले उससे
  ख़ुदा  सा  लगेगा  तुझको  से  तेरा  चाहने वाला  

  है  उसकी   दुआओं  का  असर  तुझ  पर इतना 
  कि  न जुदा,  ख़ुदा  से लगेगा  तेरा चाहने वाला

  दरम्यां  जिश्म औ  रूह के न कोई फासला रहा 
  दिले-आईन  में  दिख जायगा तेरा चाहने वाला

                                            मधु "मुस्कन "

गुरुवार, 23 मई 2013

मधु सिंह : नया माहताब निकला है

  
         नया माहताब निकला है
        

      अज़ब सी ताज़गी लगती  है  शुर्ख होठों पर 
      आरज़ू   चाह  तलब  ज़ंजीर तौक़  गहना है 

      वफ़ा की  शौक़  में  ख़ुद को  ख़ाक कर देना
      तलब  फ़िज़ूल  है  काटों  का  ताज़ पहना है 

      उफ़क  पे   कहीं  नया  माहताब  निकला है 
      दीद -उम्मीद  की तड़प  का क्या  कहना है

      ज़नाज़ा  ख्वाहिशों का  दर से तेरे  निकला है
      आशिके- दिले- मज़ार में शैदाई बन रहना है

      तेरी आँखों में समाई है सुहानी मौत की रात
      आज   की  रात  मातम  का जश्न करना है 

                                           मधु "मुस्कान

     

  

रविवार, 19 मई 2013

मधु सिंह : बातें करें


              बातें करें 
           
     

           सरापा   जिश्म  अहिल्या  का  क्यों   हो  गया पत्थर
          चलो   हम  आज  ऋषियों  के  अन्याय  की  बातें करें  

          हाथ दुस्शाशन के लुटी  थी  लाज द्रौपदी की, सभा में 
          क्यों  न  दुर्योधन  की  सभा  में हम लाज़ की बातें करें 

          हरण  सीता  का   हुआ,परीक्षा  आग्नि  में   देनी पड़ी 
          है  हो  गया  ज़रूरी   हम  आज  मर्यादा  की  बातें करें 

          मत्स्यगंधा  भी  हुई  थी   मुनि - बासना  की  शिकार
          क्यों  न  मुनिओं  के  घृणित  व्यभिचार की बातें करें 

         इतिहास  के  हर  पृष्ठ है  अंकित कहानी अन्याय की
         भूल  कर   भी  न  हम  इनके  दुहराने  की  बातें  करें 

         कहानी  छोड़  पीछे  की चलो  हम आज  की बातें करें 
         है कहानी  रोज दुहराई जाती यहाँ ,सर झुका बातें करें 
     
          बन  झुनझुने हम हाथ के,क्यों हो गये हैं आज बेबस 
         चलो  अन्याय  की  छाती पर मूँग दलने की बातें करें 

          आगाज़ तो  है सामने  रहनुमाओं के घिनौने कृत्य का 
         मिटा हस्ती दरिंदों की बेशक ,नए अंजाम की बातें करें  
       
                                                 मधु"मुस्कान"
    
         
         

        

शुक्रवार, 17 मई 2013

मधु सिंह : गुनाह मत करना



         गुनाह मत करना 


       मैं वक्त हूँ, तुम  मुझसे सवालात  मत करना 
       भूल  कर  भी,  कभी  कोई  गुनाह मत करना
     
       ऐसे  चेहरे  जो ,  पल  भर  में रंग बदल लेते हैं
       ऐसे  चेहरों  पर कभी तुम एतबार  मत करना 

       ख़ुद अपनी  निगाहें  भी  गुनाहगार  कम नहीं 
      तुम आईनों   से  बेवज़ह  तकरार  मत  करना 

       हाथों  पे जिनके  बिछी है ,फ़ितरत की लकीरें 
       हाथों   की तरफ़  उनके कभी हाथ मत करना 

      छाती  पे   समंदर   के  एक  तहरीर  लिखी है 
      पढने   की  उसे  गौर  से   तू  भूल  मत करना

       जो  घर  के  अंधेरों में,   हो  खामोश  सो गए
      उनसे  जिंदगी के  तुम  सवालात मत करना 

      सच  कह  के आज हम तो   गुनाहगार हो गए 
     भूल  से  भी , सच कहने का गुनाह मत करना 
      
                                             मधु " मुस्कान"

     

   
     
    

     
   
    

     

मंगलवार, 14 मई 2013

मधु सिंह : मज़हबे हिन्द


 
       न  जाते  हम  बुतों पर  सर  झुकाने, न  कोई  चढ़ावे   बोले  हुए हैं
     है  मज़हब हिन्द मेरा ,कीताबे - मज़हबे- हिन्द की हम खोले हुए हैं
    
                                                                         मधु"मुस्कान"
    
      




सोमवार, 13 मई 2013

मधु सिंह : मत पूँछ ज़माने तू



     मत पूँछ ज़माने तू 


       मत    पूंछ   ज़माने  तू   हम  कैसे   जिए जाते हैं
       अपनों  के  हाथो  से  तो  अब  खून  किए जाते हैं 


        उसने  तो  काट  कर  रख  दी  ज़ुबान कागज़ पर
        इल्ज़ाम   ख़ुद  पे   लगा   हम  तो  जिए  जाते हैं

       जिस  दिन  से  उसने   मुझको घर  से निकाला है
       उस     दिन से  उससे  हम ,फरियाद किए जाते हैं

       मत  पूँछ   मेरे  ज़ख्मों    की  तादात  मेरे  दोस्त
       इन्हीं  ज़ख्मों  के   सहारे  हम याद  किए जाते हैं

       फ़सले  गुल   भी  कयामत   का    हुनर  रखते हैं  
       फ़िर  भी   हम  उसको ही  आवाज़  दिए   जाते हैं

      तोड़, फेंक दिया खुश्क पत्तों सा  जिसने मुझको
      हम   उसी   शाख़  के   ख़्वाबों   पे   जिए  जाते हैं

      होठ पर अंगारे लिए जिस शक्स ने मुझे छेड़ा  था 
      ख़्वाब आईने मे सज़ा उसका हम तो जिए जते हैं 

     
                       
                                                मधु"मुस्कान"
      
    


      

शनिवार, 11 मई 2013

मधु सिंह : स्नेह का दीप जलता रहे



         स्नेह का दीप जलता हे 


         माँ  का आँचल  मचलता रहे 
         स्नेह  का   दीप  जलता  रहे 
   
         माँ  के  सीने  से  ममता  बहे 
         पुष्प बचपन का खिलता रहे 

        माँ  के ओठों से चुम्बन मिले 
        छाँव  आँचल का  मिलता रहे 

        थपकी लोरी संग मिलती रहे 
        प्यार  खुशबू बन  हँसता  रहे 

       चाँद   आँगन   में  चलता रहे 
       माँ  का  आँचल  महकता रहे 

       न  कभी आँसू दिखे  आँख में 
       माँ   का  चेहरा   दमकता रहे 

      माँ के चरणों में हो माथा झुका 
     स्नेह   का   अभ्र  उमड़ता  रहे 
    
     
                         मधु"मुस्कान"



मधु सिंह : किसी की सकल दिख रही थी

       किसी की सकल दिख रही थी 


       कहीं  एक  लड़की   ग़ज़ल लिख रही  थी 
       ग़ज़ल  में  किसी की सकल दिख रही थी 

       थे   अश्कों  के   मोती  पिरोये  गज़ल  में 
       जैसे चरागों की लौ पे ग़ज़ल लिख रही थी 

       एक दुनियाँ थी उसकी  अँधेरों  से  रोशन 
       उसके अश्कों में कोई सकल दिख रही थी 

       खेल  था  ये उसकी माशूम  तकदीर  का 
       एक फूल  सी  बच्ची बेनूर दिख रही रही 

       मांगी  थी दुआ उसने दोनों हाथ उठा कर 
       पावों  में  उसके  एक ज़ंजीर दिख रही थी 

      ये खेल था रश्मों का रिवाज़ों का कहर था 
      अरमान जल रहे थे औ मौत दिख रही थी 

                                          मधु "मुस्कान"
    

       
       
    
     
     

     

सोमवार, 6 मई 2013

मधु सिंह :हाथ बढ़ा कर माँग लिया था

                हाथ बढ़ा कर माँग लिया था 


          हाथ  बढ़ा  कर  माँग लिया  था,  चाबी मेरे दिल की  तुमने 
          ओढ़  प्यार  की  धानी  चूनर , थाम लिया था दामन तुमने 

          कभी  हकीकत सी  लगती थी, कभी  ख्वाब सी दिखती थी 
          बड़े प्यार से मिला के नज़रें  झुका  लिया  था नजरें  तुमने 

         मेघ  सरीखे   तुम  दिखती  थी,  सावन  की  काली रातों में 
         बिन  बादल वर्षात  हुई थी ,दस्तक जब-जब  दी थी तुमने 

          मेरे  दिल के मरुथल में प्यास की ज्वाला जब-जब धधकी  
          तब- तब  बन  प्यार की   सरिता  प्यास   बुझाई थी तुमने 
       
          जीवन  के   झंझावातों  में  जब - जब  बिजली   कड़की थी   
          बाँहों  में  भर  - भर  कर  मुझको,   रात  बिताई  थी तुमने 

         तन्हाई   ने  जब - जब  घेरा,   गुमनामी  की ओढ़ के चादर 
         जीवन  के अँधियारे  में , थी ज्योति जलाई तब -तब तुमने 

          जब -जब  नीद ने रिश्ता  तोड़ा  अश्क  बने थे बिस्तर मेरे 
          भर - भर  के   आगोश   अपने,  नींद   बुलाई   थी   तुमने 

                                                                       मधु "मुस्कान"


      

       

शनिवार, 4 मई 2013

मधु सिंह : ख़ुद की तलाश में

   ख़ुद की तलाश में 



 जाने  कहाँ  ले  जायगी  ये  पालकी मुझे 
 आँखों   के   मैकदे   जरा  खोल   दीजिए 

 निकली हूँ  आज सज़  मैं घर से अकेली  
 राज़  सारे  दिल  के  जरा  खोल  दीजिए 

 मैं ख़ुद से दूर हो गयी  ख़ुद की तलाश में 
 मेरे  पते को  अपना  पता  बोल  दीजिए

मेरे   खयाल   मेरे  ही   मेहमान  बन गए
मेरे ख़यालों को बस  अपना  नाम दीजिए

आँखों  से  कहीं  दूर है उल्फ़त की रोशनी 
उल्फ़त के चरांगों  को  जलने  तो दीजिए

मौसम  का  इशारा  है  चूम लो आँखों को
पत्थर नहीं हूँ मोम हूँ जरा छू तो लीजिए 

तुमने मेरा काटों सज़ा  बिस्तर नहीं देखा 
दो  चार  पल  ही  मुझको  जी तो लीजिए


                                मधु "मुस्कान"