मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

मधु सिंह : महफूज़ चिंगारी रहे




ता- कयामत  हुश्न  की महफ़ूज़  चिंगारी रहे
दिल पे काबिज आपके हुश्न की मुख्तारी रहे

कल ही तो मैंने तुमको आँखों से छू के  देखा
लबों  पे मुस्कुराहट का सिलसिला जारी रहे

मेरी पलकों तले  तुम्हारा  दिल  धड़कता है
दिल पे काबिज़ आपकी हमेसा ज़मींदारी रहे

पत्थर तरास  कर  मैंने एक तस्बीर बनाई है
कह दो हदों को तोड़ कर कायम अदाकारी रहे

खिलने लगे  हैं  फूल  गुलाबों  के जिश्म पर
खुशबू  तुम्हारे जिश्म की ता - उम्र  तारी  रहे


                            मधु "मुस्कान"





















मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

मधु सिंह : होठों की नमी

हालात  जिंदगी   के  हद  से  गुज़र गए हैं
पलकों  पे  ख्वाब  के  शोले  बिखर गए हैं

चाहा  था  चूम लूँ  होटों  की  नमी  उनके
होटों से आग के कई दरया गुज़र गए हैं

जुगनू जो  चमकते थे  रातों  के अंधेरों में
रूख मोड़ के वो जुगनू जाने किधर गए हैं

तन्हाईओं का पहरा ख्वाबों पे लग गया है
पर खाबों के परिदों के कबके बिखर गए हैं 

गोया कहीं  खो गया  मेरी यादों  का समंदर
लम्हात  जिंदगी   के   कबके  ठहर गए  हैं

चाहा था जिसे उम्रभर वो ही न मिल सका
चाहतों के चाक -चाक  पुरज़े बिखर गए हैं



                                  मध् "मुस्कान "