याद फिर किसी की दिला गया कोई
इक नया जख्म खिला गया कोई
जरा मौसम की मेहरबानियाँ देखो
अब के गर्मी में घर जला गया कोई
खीँच कर दिल पे लकीरें गहरी
नींद उम्र भर की चुरा गया कोई
वादा था चाँद का बाम पर आने का
जुगनुओं को बैसाखी थमा गया कोई
इक प्यास ले तमाम उम्र सहरा में रहे
और आग सहरा में लगा गया कोई
इक खता क्या जो लम्हों ने किया
के ता उम्र की सज़ा दे गया कोई
मधु "मुस्कान "