सोमवार, 29 जुलाई 2013

मधु सिंह: ज़न्नत की हक़ीकत

   ज़न्नत की हक़ीकत    

   हमने  देखी है  उनके ज़न्नत की हक़ीकत ,लेकिन 
   ऐ ख़ुदा उनका ज़न्नत तू  उनको  मुबारक कर दे
  ऐसी ज़न्नत जहाँ  जिश्म की कीमत लगाई जाती है  
  हुश्न बे-अदब हो मंडी की राह चलता हो जहाँ
  उफ़  वो ज़न्नत और वो जन्नते -फ़ितरत,वो नज़ारा
 अश्क आखों से मेरे लहू बन के टपक पड़ते हैं 
 मुझको  तू बख्स दे जन्नत की फ़ितरतों से मेरे सलीम चिस्ती 
 मुझको लौटा दे मेरा दोज़ख़ ,मेरा दोज़ख तू  मुझको  मुबारक कर दे 
                                                                 
                                                                   मधु "मुस्कान"

10 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन " मुझको तू बख्स दे जन्नत की फ़ितरतों से मेरे सलीम चिस्ती
    मुझको लौटा,दे मेरा दोज़ख़,मेरा दोज़ख तू मुझको मुबारक कर दे"

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  2. अति सुंदर, ऐसी जन्नत नही चाहिए

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  3. वाह बहुत खूब ...सार्थक लेखनी

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