कामना की त्रिपथगा *
तुम प्रणय की वीथिका में , कर पृथक श्रृंगार आना
ले सुगन्धित पुष्प पावन , तुम समर्पि त भाव आना
             संग कामना  की त्रिपथगा  रहे ,उर आराधना  का भाव हो 
             कर प्रज्वलित दीप  हिय,  बन  कोकिला की  हूक आना इन्दु हिमकर विधु कलानिधि के ,उर ले सकल भाव तुम
तम तिमिर की व्यथा हरने बन , प्रभा का पुंज आना
स्वर न हों याचना के बक्ष में ,बस समर्पण कामना हो
सारंग सरि सरिता तटिन के ले सकल तुम रूप आना
बन्धनों से कर स्वयं को मुक्त, ले हाथ समिधा भाव
बन अतिथि , मन कर मुदित , लिए हर्षित भाव आना
मधु "मुस्कान "
* गंगा
 
भाव भाषा की दृष्टि से एक श्रेष्ठ रचना
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