के साथ लगभग तीन माह के यूरोपीय भ्रमण पर
इसे मत कहों तुम समंदर का पानी
है इसमें छुपी आँसुओं की कहानी
दीप अंगणित निशा वक्ष पर थे जलाए
विरह के झकोरों ने जिसको बुझाए
शलभ आ न पाया निशा क्रूर थी
मिलन की घड़ी भी बहुत दूर थी
दामिनी थी कड़कती निशा मध्य ऐसे
बक्ष में हो रहा हो विस्फोट जैसे
रुदन ही समंदर रुदन ही कहानी
न पढ़े इसको दुनियाँ दो बूँद पानी
मधु "मुस्कान "
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