गंगा -जमन की आँखे रो -रो के थक गईं हैं
मुल्क के बाज़ार में हैं बिक रहीं अब बेटियाँ ममता बिलख रही है, सारी मायें उदास हैं
सिक रहीं हैं बेटिओं के नाम पर,अब रोटियाँ
सारा वतन है बन गया काज़ल की कोठरी
माँ-बेटिओं के नाम पर चल रहीं हैं गोटियाँ
इंसाँ ज़मी पे, फ़लक पे सारे -तारे उदास हैं
मुल्क के तहज़ीब की,की जा रहीं हैं बोटियाँ
बरबादिओं के हर तरफ है मंजर ही दिख रहे
दोज़ख में जी रहीं इस मुल्क में अब बेटियाँ
सपने हमारी बेटिओं के,जल खाक हो सो गए
अब कोख से ही आने में डर,मर रहीं हैं बेटियाँ
मधु "मुस्कान"
सारा वतन है बन गया काज़ल की कोठरी
जवाब देंहटाएंमाँ-बेटिओं के नाम पर चल रहीं हैं गोटियाँ
...बहुत उम्दा..
वर्तमान का सच बयान करती सुन्दर रचना!
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जवाब देंहटाएंइंसाँ ज़मी पे, फ़लक पे सारे -तारे उदास हैं
जवाब देंहटाएंमुल्क के तहज़ीब की,की जा रहीं हैं बोटियाँ
बरबादिओं के हर तरफ है मंजर ही दिख रहे
दोज़ख में जी रहीं इस मुल्क में अब बेटियाँ
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सपने हमारी बेटिओं के, जल खाक हो सो गए
जवाब देंहटाएंअब कोख से ही आने में डर, मर रहीं हैं बेटियाँ
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जवाब देंहटाएंShayad isse behtarin aur koi prastuti ho nahi sakti , Aap ki kalam main jo dhaar hai , wo kisi aur rachnakar ke paas mil nain sakti .
जवाब देंहटाएंहमारे वक्त की मौजू समस्या को स्वर दिए हैं इस रचना ने अर्थ पूर्ण .
जवाब देंहटाएंविचार और भाव की सशक्त अभिव्यक्ति .इस दौर की ज्वलंत समस्याओं को आपने उठाया .काफी समय से आपकी रचनाओं तक कुछ तकनीकी कुछ अपनी कम्प्यूटर अल्पज्ञता की वजह से पहुँच नहीं
जवाब देंहटाएंपा रहे थे .आज पहुंचे खलनायक बनके स्पेम बीच में आ गया है पोस्ट और ब्लोगर के बीच .