नाँच रही थी
मैं छत पर से देख रहा था,तुम खिड़की से झाँक रही थी
बांध के अपने पाँव में पायल बन मीरा तुम नाँच रही थी
नाँच रही थी ,नाँच रही थी ,नाँच रही थी ,नाँच रही थी ........
कह, कह, कह, कह कर तुम ता ता थईया
बन मीरा तुम नाँच रही ,नाँच रही थी, नाँच रही थी ........
बन मीरा तुम नाँच रही ,नाँच रही थी, नाँच रही थी ........
जब जब मैंने तुमको देखा ,तुम खिड़की से झाँक रही थी
हाथ में लेकर मेरे खतों को छुप-छुप कर तुम बाँच रही थी
बाँच रही थी , नाँच रही थी ,नाँच रही थी , नाँच रही थी ........
कह, कह, कह, कह कर तुम ता ता थईया,
बन मीरा तुम नाँच रही थी ,नाँच रही थी, नाँच रही थी ........
बन मीरा तुम नाँच रही थी ,नाँच रही थी, नाँच रही थी ........
मैंने जब- जब तुमको देखा, कदम की आहट भाँप रही थी
सज धज कर , बन मीरा तुम प्यार हमारा जाँच रही थी
जाँच रही थी , नाँच रही थी ,नाँच रही थी , नाँच रही थी ........
कह, कह, कह, कह कर तुम ता ता थईया,
बन मीरा तुम नाँच रही ,नाँच रही थी, नाँच रही थी ........
बन मीरा तुम नाँच रही ,नाँच रही थी, नाँच रही थी ........
जब- जब मैंने तुमको देखा , चाहत मेरी माप रही थी
प्यार के गहरे सागर में तुम पग पग मेरा नाप रही थी
नाप रही थी, नाँच रही थी ,नाँच रही थी , नाँच रही थी ........
नाप रही थी, नाँच रही थी ,नाँच रही थी , नाँच रही थी ........
कह, कह, कह, कह कर तुम ता ता थईया,
बन मीरा तुम नाँच रही थी ,नाँच रही थी, नाँच रही थी ........
बन मीरा तुम नाँच रही थी ,नाँच रही थी, नाँच रही थी ........
जब जब मैंने तुमको देखा ,तुम चेहरे को ढाँप रही थी
ओढ़ प्रेम की केसर चूनर, पावं में घूँघर बांध रही थी
ढाँप रही थी, नाँच रही थी ,नाँच रही थी , नाँच रही थी ........
ओढ़ प्रेम की केसर चूनर, पावं में घूँघर बांध रही थी
ढाँप रही थी, नाँच रही थी ,नाँच रही थी , नाँच रही थी ........
कह, कह, कह, कह कर तुम ता ता थईया,
बन मीरा तुम नाँच रही ,नाँच रही थी, नाँच रही थी ........
नाँ ............च ........रही ..............थी ,नाँ .....................च .................... रही ...............थी
मधु "मुस्कान"
बन मीरा तुम नाँच रही ,नाँच रही थी, नाँच रही थी ........
सारी दुनिया नाँच रही थी , झूम रही थी ,नाँच रही थी ,झूम रहीथी
ताक धिना धिन ,ता ता थैया , ताक धिना धिन ,ताता थैया ,कह कह कह कर नाँच रही थी नाँ ............च ........रही ..............थी ,नाँ .....................च .................... रही ...............थी
मधु "मुस्कान"
केसर /ताक धिना धिन ........
जवाब देंहटाएंसंगीत और प्रेम की समस्वरता है इस गीत में ,चुलबुलाहट है
सुन्दर और मधुर गीत!
जवाब देंहटाएं.आभार आपकी टिपण्णी का .बहुत बिंदास बोल ,बिंदास अभिव्यक्ति प्रेम पगी .
जवाब देंहटाएंमैं छत पर से देख रहा था,तुम खिड़की से झाँक रही थी
जवाब देंहटाएंबांध के अपने पाँव में पायल बन मीरा तुम नाँच रही थी
बेहद सांगीतिक प्रेमा भक्ति .
शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी का .
अतिथि कविता :डॉ .वागीश मेहता , तुम्हें धिक्कार है
जवाब देंहटाएंअतिथि कविता :डॉ .वागीश मेहता
तुम्हें धिक्कार है
यूं तो वागीश जी ने यह कविता स्वतन्त्र सन्दर्भों में लिखी है ,पर आज के हालात में ,अगर दिग्विजय सिंह
जी को अपना चेहरा नजर आता है तो उन्हें इस आईने को ज़रूर देखना और पढ़ना चाहिए
वतन और कौम पर भारी ,महाकलंक ,
निरंतर झूठ बोले जा रहे ,निष्कंप ,
सुर्खी बने अखबार में ,चर्चा तो हो ,
गज़ब कैसा है तुम्हारा ये नया किरदार ,
धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार .
(2)
देखे हैं इस देश ने ,कई विषम गद्दार ,
जेलों में हैं बंद कई ,कुछ अभी फरार ,
इतिहास में भी दर्ज़ है ,कुछ नाम और भी ,
पर तुम्हारे सामने ,बौने सभी लाचार ,
धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार .
(3)
यह तुम्हारी मानसिकता का घटित परिणाम ,
बटा जो देश भारत ,तो बना पाकिस्तान ,
उसी के वास्ते शहतीर घर का हो गिराते तुम ,
अब भी बाकी क्या कसर ,तुम हो विकट मक्कार ,
धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार .
(4)
चंद वोटों पर निगाहें ,कुछ तो बुरा नहीं ,
फिर भी तलुवे चाटना ,ज़िल्लत से कम नहीं ,
पर आदतन तुम देश को ,बदनाम करते हो ,
तुम्हारे विष वमन पर हो रही ये कौम शर्मशार ,
धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरू भाई )
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
सुन्दर___बन मीरा कोइ नांच रहा है ,बन कन्धा कोइ
जवाब देंहटाएंकोइ झांक रहा है ........प्रेम की गंगा बहते
चलो
नाँच रही थी ,नाँच रही थी , नाँच रही थी ........लयबद़ध रचना
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