मसीहा
जिनके माथों पर लिखी है जेल की ऊँची फसील
धृतराष्ट्र बन,वो आईना हमको दिखाने में आ गए
आधी अवादी मुल्क की मर रही फुटपाथ पर
हुश्ने मीनार, ताज का किस्सा सुनाने आ गए
घर से लेकर घाट तक बिक रहा इमान है
और वो बहुमत के गणित का खेल समझानेआ गए
आग फिरका परस्ती की है जल रही चारो तरफ
उधर वो चाँद पर भी दंगें की साज़िस कराने आ गए
मजबूरियों में जिश्म सारा हो गया है निर्वसन
और वो जिश्मे -बेपर्दगी का तमासा दिखाने आ गए वो हुश्न के नंगे गरारे की डिजाइन दिखाने आ गए
है नहीं महफूज़ कोई भी इबादतगाह जिस मुल्क में
बन मसीहा , चाँद पर मंदिर-मस्ज़िद बनाने आ गए
मधु "मुस्कान "
बढ़िया है आदरेया |
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जवाब देंहटाएंहै नहीं महफूज़ कोई भी इबादतगाह जिस मुल्क में
बन मसीहा , चाँद पर मंदिर-मस्ज़िद बनाने आ गए
बहुत खूब .
ईमान .,चारों तरफ ,साजिश ,जिस्म ,तमाशा ,हुस्न ,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बिम्ब योजना रची है भाव और अर्थ की सश्क अभिव्यक्ति .'पूर्णिमा 'के चाँद सी ,बे दाग शायरी ..
सशक्त अभिव्यक्ति हुई है भाव और अर्थ की .
जवाब देंहटाएंआबादी
जवाब देंहटाएंहै नहीं महफूज़ कोई भी इबादतगाह जिस मुल्क में
जवाब देंहटाएंबन मसीहा , चाँद पर मंदिर-मस्ज़िद बनाने आ गए
बिलकुल सच कहा आपने
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