चुप -चाप कोई दूर से ,प्यार मुझको कर गया
मैं ,एक चेहरा रेत पर , उसका बनाती रह गई
एक तिनका रेत का ,चुप- चाप मुझको छल गया
हंसी लहरों में बूंदे प्यार की मैं देखती ही रह गई
बूंद कोई ज्वार का ,मेरे जिश्म को तर कर गया
ज्वार की लहरों की बाँहों में , मैं मचलती रह गई
भर कोई बाँहों में अपने ,प्यार मुझको कर गया
खिलखिलाती धूप में ,मैं सीपियाँ हीं बिनती रह गई
चुप -चाप कोई पास आकर , माँग मेरी भर गया
बेसब्र हो बाँहों में उसके बस मैं तड़पती रह गई
और कोई प्यार से ,मेरी उम्र , नाम अपने कर गया
मधु "मुस्कान """
बहुत बढ़िया है आदरेया |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
बहुत ही सुन्दर वाह क्या कहने हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबिंदास बोल .बोल राधा बोल कृष्णा को बोल नित नए बोल
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
Wahh kya baat hai bahut khoob ......bahut hi badhiya likha hai aapne madhu ji
जवाब देंहटाएंBehtreen Gajal
जवाब देंहटाएंप्रेम भाव की सशक्त अनुभूति .रागात्मक सम्बन्ध की बांसुरी है यह रचना .
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