मंगलवार, 15 जनवरी 2013

43. मधु सिंह : ज़हर

        ज़हर

      मुद्तों   तक   होस  में  अब  तो  वो  आ  सकते  नहीं 
      गुफ्तगू  करता  रहेगा यह शहर अब उसके  ज़हर  का 

      इस  तरह  भी  जिन्दगी  क्या  हो गई  मजबूर  उनकी 
      क्यों  नहीं  दिखता असर उस शख्स पर मेरी नज़र का 

      है  धुप  अँधेरा  छा  गया , अब   ज़िन्दगी  के  वज़्म में 
      है  उतरना  मुमकिन  नहीं  अब असर उसके  ज़हर का 

     क्या भरोसा इस जहाँ में कोई रिश्तों पे कर पायेगा कभी 
     है छला अपनों ने मुझको , है असर  अपनों  के जहर का 

     यमराज  भी  ले जाता  अगर,  बेशक  बचा  लेती  उसे  मै 
     बढ़ जान से चाहा जिसे ,उस पर है असर किसके ज़हर का 

    सारे भरोसे जल गए अब  , किसको  अपना या  पराया कहें 
    है ,हक़ पे मेरे आज काबिज़ हो गया असर किसकी नज़र का 

     है, विषैला नाग के विष से भी ज्यादा असर उसके  ज़हर का 
     है, पसरा हुआ आज तक उस पर असर अपनों  के जहर का

     ( 1984 की एक घटना के आधार पर,आज भी वह अकेली है )

                                                                     मधु "मुस्कान"

     

    

     
     

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ,आपने बड़ी सहजता से हर औरत के सीने में छुपा एक ऐसा भय जो पतिओं
    पर नजर रखने की तरफ प्रेरणा देता है को बखूबी पेश किया है

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  2. क्या भरोसा इस जहाँ में कोई रिश्तों पे कर पायेगा कभी
    है छला अपनों ने मुझको , है असर अपनों के जहर का

    ....बहुत खूब! बेहतरीन प्रस्तुति..

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  3. सुन्दर भाव ,व्यथा का चरम बिंदु , नारी जीवन को मर्माहत करने वाली गहनतम अनुभुतीओं की सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. बहुत सुंदर भाव,सटीक गहन प्रस्तुति,,,बधाई मधु जी,,

    recent post: मातृभूमि,

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  5. ज़हर

    मुद्तों तक होस में अब तो वो आ सकते नहीं (मुद्दतों )
    गुफ्तगू करता रहेगा यह शहर अब उसके ज़हर का

    इस तरह भी जिन्दगी क्या हो गई मजबूर उनकी
    क्यों नहीं दिखता असर उस शख्स पर मेरी नज़र का

    है धुप अँधेरा छा गया , अब ज़िन्दगी के वज़्म में (घुप्प /घुप )
    है उतरना मुमकिन नहीं अब असर उसके ज़हर का

    क्या भरोसा इस जहाँ में कोई रिश्तों पे कर पायेगा कभी
    है छला अपनों ने मुझको , है असर अपनों के जहर का

    यमराज भी ले जाता अगर, बेशक बचा लेती उसे मै
    बढ़ जान से चाहा जिसे ,उस पर है असर किसके ज़हर का

    सारे भरोसे जल गए अब , किसको अपना या पराया कहें
    है ,हक़ पे मेरे आज काबिज़ हो गया असर किसकी नज़र का

    है, विषैला नाग के विष से भी ज्यादा असर उसके ज़हर का
    है, पसरा हुआ आज तक उस पर असर अपनों के जहर का

    ( 1984 की एक घटना के आधार पर,आज भी वह अकेली है )

    मधु "मुस्कान"

    बहुत सुन्दर रचना है .प्रतीक विधान भी पैरहन भी शब्दों का .



    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    .फिर इस देश के नौजवानों का क्या होगा ?http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2013/01/blog-post_1932.html …
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    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    ram ram bhai मुखपृष्ठ रविवार, 20 जनवरी 2013 .फिर इस देश के नौजवानों का क्या होगा ? http://veerubhai1947.blogspot.in/
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  6. ये कौन से जन्म की दुश्मनी निकाल रहा है स्पेम बोक्स .यहाँ से भी टिप्पानी गायब .

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