गुरुवार, 17 जनवरी 2013

45.मोहब्बत का महीना था

      मोहब्बत का महीना था 


 इधर  थी  प्यार  की पुरुआ  ,उधर  वो  थे ,फ़साना था 
मोहब्बत  ही  मोहब्बत थी  बड़ा पावन का महीना था 

न  जाने  कौन रह रह कर , सदाएँ  दे रहा  था प्यार से  
इधर  मथुरा  की  दुआएँ थी, उधर  दिल का मदीना था 

हर घड़ी  , इधर  हम  रामायण तो वो  कूरान  पढ़ते  थे 
इधर गीता की कहानी थी, उधर रमज़ान का महीना था 

कहानी  खुद  ही लिख दी मोहब्बत की पाकीज़गी की ने  
इधर  थी नौरात्रि की पूजा उधर अल्लाह का नगीना  था

 बयारें प्यार की  खुशबू की  ही थीं बह रहीं  इस मुल्क में 
 न  नफ़रत  थी  न  सिकवे  थे , बड़ा  पावन  महीना  था 

न  जाने किस घड़ी  एक चिंगारी  उठी  उसपार सरहद  से 
किसी की नापाक हरकत थी,औ मोहब्बत का महीना था 

 इरादे-पाक का मतलब समझ में आ गया सारे ज़माने को 
सने थे हाथ दोनों खूँ  में उसके, औ इबादत का महीना था 
                                                            मधु "मुस्कान ""





11 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत प्रस्तुति हार्दिक बधाई

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  2. मथुरा की दुआएं, दिल का मदीना |
    बेहतरीन आदरेया-

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  3. इरादे-पाक का मतलब समझ में आ गया सारे ज़माने को
    सने थे हाथ दोनों खूँ में उसके, औ इबादत का महीना था

    ....बहुत सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  4. सुन्दर और सराहनीय प्रस्तुति , लाजवाब न जाने कौन रह रह कर , सदाएँ दे रहा था प्यार से
    इधर मथुरा की दुआएँ थी, उधर दिल का मदीना था

    हर घड़ी , इधर हम रामायण तो वो कूरान पढ़ते थे
    इधर गीता की कहानी थी, उधर रमज़ान का महीना था

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर भाव एवम सुन्दर प्रस्तुति न जाने किस घड़ी एक चिंगारी उठी उसपार सरहद से
    किसी की नापाक हरकत थी,औ मोहब्बत का महीना था

    इरादे-पाक का मतलब समझ में आ गया सारे ज़माने को
    सने थे हाथ दोनों खूँ में उसके, औ इबादत का महीना था

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  6. मोहब्बत का महीना था



    इधर थी प्यार की पुरुआ ,उधर वो थे ,फ़साना था (पुरबा /पुरवा /पुरवाई )
    मोहब्बत ही मोहब्बत थी बड़ा पावन का महीना था (मुहब्बत ,मौहब्बत )

    न जाने कौन रह रह कर , सदाएँ दे रहा था प्यार से
    इधर मथुरा की दुआएँ थी, उधर दिल का मदीना था

    हर घड़ी , इधर हम रामायण तो वो कूरान पढ़ते थे (कुरआन /क़ुरान )
    इधर गीता की कहानी थी, उधर रमज़ान का महीना था

    कहानी खुद ही लिख दी मोहब्बत की पाकीज़गी (की )ने .........यहाँ की फ़ालतू है ,हटायें ....कृपया
    इधर थी नौरात्रि की पूजा उधर अल्लाह का नगीना था

    बयारें प्यार की खुशबू की ही थीं बह रहीं इस मुल्क में ...........खुश्बू .........
    न नफ़रत थी न सिकवे थे , बड़ा पावन महीना था ........शिकवे .........

    न जाने किस घड़ी एक चिंगारी उठी उसपार सरहद से
    किसी की नापाक हरकत थी,औ मोहब्बत का महीना था

    इरादे-पाक का मतलब समझ में आ गया सारे ज़माने को
    सने थे हाथ दोनों खूँ में उसके, औ इबादत का महीना था
    मधु "मुस्कान ""

    बहुत अर्थपूर्ण साम्य है ,संस्कृति के समान तत्वों का .





    ,कृपया इसी



    सन्दर्भ में

    यह भी पढ़िए -

    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    .फिर इस देश के नौजवानों का क्या होगा ?http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2013/01/blog-post_1932.html …
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    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    ram ram bhai मुखपृष्ठ रविवार, 20 जनवरी 2013 .फिर इस देश के नौजवानों का क्या होगा ? http://veerubhai1947.blogspot.in/
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  7. सर मुंडाते ही ओले पड़े .टिपण्णी स्पेम में जा रहीं हैं .लम्बी टिपण्णी की थी इस रचना पे .

    लो कल्लो बात यहाँ से भी टिपण्णी साफ़ .गई स्पेम बोक्स में .

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