सोमवार, 7 जनवरी 2013

39.Madhu Singh: Kafan






          कफ़न 


     अरमान  जल  रहें  हैं  मातम  की गोद में 
     बिगड़ा  हुआ ज़माने का चलन देख रहा हूँ

     दिलों में  छुपे ज़हर  को  पहचानते  नहीं 
     अरमान  के  पहलू  में  कफ़न  देख रहा हूँ

    इज्जत  तो घर में ही लुटने  लगी है दोस्त
    आग  में  जलता  हुआ  वतन  देख  रहा हूँ

    अम्नो -अमन  के चेहरे  मायूस  हो  गए हैं 
    सलीबों पे लटका  हुआ चमन  देख  रहा हूँ

   सीता तो जली गई  थी  मर्यादा की  आग में
   आज घर-घर में  मर्यादा  हनन  देख  रहा हूँ

   रिश्ते  तो  सारे  जल  कर  ख़ाक  हो  गए हैं
   मुरझाई  हुई  ममता  का  रुदन  देख  रहा हूँ

    इज्जत तो लुट  रही  दरिन्दों  के  हाथ  रोज
    हर बेवा  के पे  माथे पर सिकन  देख रहा  हूँ

    तहज़ीबो- अदब को,  दफ्न कर  दिया जिंदा
    अब इस मुल्क  का बदला चलन देख रहा हूँ
                                           मधु "मुस्कान "

   

   

    
   

10 टिप्‍पणियां:

  1. अरमान जल रहें हैं मातम की गोद में
    बिगड़ा हुआ ज़माने का चलन देख रहा हूँ........................................smst panktiyon dwara sunder abhivyakti

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  2. समाज को आइना दिखाती सटीक प्रस्तुति - बहुत खूब

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  3. समाज की असल तस्वीर
    सुंदर भाव, अच्छी रचना

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  4. बेहतरीन प्रस्तुति,वर्तमान सामाजिक परिवेस को
    बेनकाब करती रचना अरमान जल रहें हैं मातम की गोद में
    बिगड़ा हुआ ज़माने का चलन देख रहा हूँ........सीता तो जली गई थी मर्यादा की आग में
    आज घर-घर में मर्यादा हनन देख रहा हूँ.........

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  5. तल्ख़ सच्चाईओं से रूबरू कराती सुन्दर और भावपूर्ण
    प्रस्तुति अरमान जल रहें हैं मातम की गोद में
    बिगड़ा हुआ ज़माने का चलन देख रहा हूँ

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  6. हमारे वक्त की चीत्कार /आवाज़ है यह रचना

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  7. विचार और भाव की सशक्त अभिव्यक्ति .इस दौर की ज्वलंत समस्याओं को आपने उठाया .काफी समय से आपकी रचनाओं तक कुछ तकनीकी कुछ अपनी कम्प्यूटर अल्पज्ञता की वजह से पहुँच नहीं

    पा रहे थे .आज पहुंचे खलनायक बनके स्पेम बीच में आ गया है पोस्ट और ब्लोगर के बीच .

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