नफ़रत की आग और भी अब तेज हो गई चलो -चलें यहाँ से अब उम्र भर के लिए
रास्ते खुद-ब-खुद हो गए साजिश में सरीक
चलो-चलें सहराओं की तरफ बसर के लिए
यहाँ तो दुआएँ भी कत्ल करने पे आमादा हैं
चलो-चलें कहीं और जिंदगी की सहर लिए
जिश्म को ही जब भुनाने लग गई हैं रोटियाँ
चल-चलें कहीं और रोशनी की खबर के लिए
खुद्गर्जियाँ अपनों की अब जलाने लग गई है
चलो-चलें कहीं प्यार की एक नज़र के लिए
बस्तियां भीं जब सरीफों की सुपुर्दे खाक हैं
चलो-चलें शमशानों की तरफ़ बसर के लिए
यहाँ तो होमो- हवन में ही हाथ जलने लगे है
चलो-चलें कहीं और ही ज़िन्दगी के सफ़र लिए
मधु"मुस्कान"
वाह मधु जी बेहतरीन शानदार ग़ज़ल कही है सभी के सभी अशआर मशाल्ल्लाह कमाल के हैं आधुनिक हैं सत्य हैं ढेरों दाद कुबूलें.
जवाब देंहटाएंसुन्दर से इस ब्लॉग से, रहा अभी तक दूर |
जवाब देंहटाएंफ़ालोवर हूँ आज से, पूरा पढूं जरूर ||
नफ़रत की आग और भी अब तेज हो गई चलो -चलें यहाँ से अब उम्र भर के लिए
जवाब देंहटाएंरास्ते खुद-ब-खुद हो गए साजिश में सरीक
चलो-चलें सहराओं की तरफ बसर के लिए
वाह ... बहुत खूब
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बस्तियां भीं जब सरीफों की सुपुर्दे खाक हैं
जवाब देंहटाएंचलो-चलें शमशानों की तरफ़ बसर के लिए
यहाँ दरख्तों के साए में धूप लगती है ,
जवाब देंहटाएंचलो यहाँ से चलें ,और उम्र भर के लिए .बहुत खूब लिखा है हरेक शैर.
ये कौन से जन्म की दुश्मनी निकाल रहा है स्पेम बोक्स .यहाँ से भी टिप्पानी गायब .
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