मंगलवार, 8 जनवरी 2013

40.Madhu Singh:Chalo-Chalen

             चलो-चलें 

        
            नफ़रत की आग और  भी अब तेज हो गई                                                   चलो  -चलें  यहाँ  से अब  उम्र  भर के लिए 

             रास्ते खुद-ब-खुद हो गए साजिश में सरीक
             चलो-चलें  सहराओं की तरफ बसर के लिए

             यहाँ तो दुआएँ भी कत्ल  करने पे आमादा हैं
             चलो-चलें  कहीं और  जिंदगी की  सहर लिए

       जिश्म को ही जब भुनाने  लग गई  हैं रोटियाँ
       चल-चलें  कहीं और रोशनी की खबर  के लिए 

      खुद्गर्जियाँ अपनों की अब जलाने लग  गई  है
      चलो-चलें कहीं प्यार  की  एक नज़र के लिए

      बस्तियां  भीं  जब सरीफों की  सुपुर्दे खाक  हैं
      चलो-चलें शमशानों की तरफ़ बसर   के लिए

      यहाँ तो होमो- हवन में ही  हाथ जलने लगे  है
      चलो-चलें कहीं और ही ज़िन्दगी के सफ़र लिए

                                                        मधु"मुस्कान"
   

    
      
        
        


       

       

     
     
    

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह मधु जी बेहतरीन शानदार ग़ज़ल कही है सभी के सभी अशआर मशाल्ल्लाह कमाल के हैं आधुनिक हैं सत्य हैं ढेरों दाद कुबूलें.

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  2. सुन्दर से इस ब्लॉग से, रहा अभी तक दूर |
    फ़ालोवर हूँ आज से, पूरा पढूं जरूर ||

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  3. नफ़रत की आग और भी अब तेज हो गई चलो -चलें यहाँ से अब उम्र भर के लिए

    रास्ते खुद-ब-खुद हो गए साजिश में सरीक
    चलो-चलें सहराओं की तरफ बसर के लिए
    वाह ... बहुत खूब

    उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति

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  4. बस्तियां भीं जब सरीफों की सुपुर्दे खाक हैं
    चलो-चलें शमशानों की तरफ़ बसर के लिए

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  5. यहाँ दरख्तों के साए में धूप लगती है ,

    चलो यहाँ से चलें ,और उम्र भर के लिए .बहुत खूब लिखा है हरेक शैर.

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  6. ये कौन से जन्म की दुश्मनी निकाल रहा है स्पेम बोक्स .यहाँ से भी टिप्पानी गायब .

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