मंगलवार, 29 जनवरी 2013

52. मधु सिंह : शिखंडी




                शिखंडी 


      जब सारे सिखंडी मुल्क के, सत्ता पर काबिज हो गए 
      सच कहूँ,मत पूँछिये,बस हाय सब घर जलाने आ गए 

      अस्मिता   ही  देश  की , जब   जल  रही  हो  आग में 
      जिश्म से ले रूह तक,  बन सब  नंगी  इबारत छा गए 

       बताते पावँ  की  जूती  है औरत , सर उठा  जो फक्र से 
       ऐसे  दरिन्दे  देश  में  अब  सरपंच  बन  कर  आ  गए 

       जितने बेजुबाँ,अंधे और बहरे थे, बस  रहे इस  देश में
       ले अक्ल  का कच्चा  घड़ा, सारे  मौत बन कर छा गए

       कितने सिकन्दर बह गए, कितने मिल गए हैं खाक में 
       सत्ता  पे काबिज  दोगले  सब  ,लुटिया  डुबोने  आ गए 

                                                                मधु "मुस्कान"
       
    
    
       

    
      

 
      

    

    

      
     
     

    

6 टिप्‍पणियां:

  1. देश की इस दौर की हरारत का स्पंदन है इस रचना में .

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  2. मदाम ये काला चस्मा चाँद में दाग नहीं है शायरी है .

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  3. वर्तमान की झांकी दिखा रही है यह रचना |
    आशा

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  4. यथार्थ कहती रचना..
    अभी तो यही हालात है देश के...

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  5. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  6. खापी /खापिये इन्हें ही पालें हैं .मासूम प्रेमियों पे बर्बर जुल्म ढाते हैं .बेहतरीन भाव रचना लम्पट चरित्र की .आभार आपकी टिपण्णी का .बेहतरीन लेखन के लिए बधाई .

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