रविवार, 17 फ़रवरी 2013

69. मधु सिंह :पड़ी लाश माँ की

                पड़ी लाश माँ की 



              चलो  आज  एक  भूखे को रोटी  खिलाएँ 
              मोहब्बत  करें   और  मोहब्बत  सिखाएँ     

               पड़ी  लास  माँ  की  बगल  में  है  उसके 
               उठा उस अभागे को अपने सीने  लागाएँ 
   
               माँ मर गई सिर्फ़ एक रोटी की खातिर 
              चलो  आज उसको अपना  बेटा  बनाएँ  

               देखो  जरा  आज  उस  बच्चे का चेहरा
               उसे   कैसे  माँ   की   हकीकत  बताएँ 

               है कैसे वो माँ पे   अपनी नज़रें टिकाये   
               दुनियाँ  के किस्से ह्म  उसे क्या बताएँ

               उसे   क्या   पता  अब   न  बोलेगी  माँ
               क्या  हम  कहें ,उसको क्या  हम बताएँ 

               रह - रह  के कैसे वह  रुदन  कर  रहा है 
               अब न चूमेगी  माँ उसको   कैसे  बताएँ 

                है  लाश  से  माँ के जो वो  चिपका हुआ
                माँ के  सीने  से  उसको हम कैसे हटाएँ 

               जल  गई जो अभागन भूख की आग में 
               उस  के  बच्चे  को अपना बच्चा बनाएँ 
              
               माँ की ममता का आँचल जुदा हो गया 
               अपनी  ममता  आँचल  उसे हम उढ़ाएँ 

              अपने आँचल के साये में उसको सुलाएँ 
              जी  भर  के  उसको  हम  लोरी   सुनाएँ 

              जब भी देखे हमें वो  माँ कह कर बुलाए 
              सुला  अपनी  गोदी  में  थपकी  लगाएँ 

             बड़ा  हो  के जब  वो माँ  कह-कह बुलाए 
             दौड़ कर हम उसको अपनी  छाती लगाएँ 
  
             कभी  उसको  यह  आभास  होने न पाए 
             वो  माँ  ही  कहे, उसको हम बेटा   बताएँ 
            
        (मार्च के द्वितीय सप्ताह तक  मैं पुनः उपस्थित हो सकूंगी , आप सब को मेरा सादर अभिवादन )
                                             मधु "मुस्कान"

                
 
        

13 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत खूब !बहुत ही मार्मिक प्रसंग .हेव ए ग्रेट नाईट .

    घर से मस्जिद है बहुत दूर ,चलो यूं कर लें ,

    किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए .

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  2. रोटी-रोजी-भूख की, बहुत कठिन है मार।
    लगता घोड़े बेचकर, सोई है सरकार।।
    --
    आपका लिंक आज के चर्चा मंच पर भी है!

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  3. बहुत मार्मिक रचना आदरनीय मधु जी

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  4. बहुत ही मार्मिक अबिव्य्क्ति.

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  5. शुक्रिया आपकी टिपण्णी का शुभ भावनाएं अंतराल की .

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  6. बहुत सुन्दर और अपने भी जिस तरीके से रचना की है हम भी पहली लाइन से अनंत तक जाने के लिए मजबूर हो गए
    मेरी नई रचना
    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

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  7. बहुत मार्मिक और प्रेरक रचना. शुभकामनाएँ.

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  8. दिल को छू गयी ये रचना ....

    आपकी वापसी का इंतज़ार रहेगा.
    शुभकामनाएं मधु!

    अनु

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  9. वेहद संवेदनशील प्रस्तुति,इंतजार है वापसी का

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