रविवार, 17 मार्च 2013

70.मधु सिंह : बेबस बुढ़ापा रहा होगा



           बुढ़ापा रहा होगा 


       उठने  की  कोशिशो  में  बारहां  जो गिर  गया होगा 
       रोटी  भी  एक  हाथ  से  उठा  जो  न खा  सका होगा 

       उम्र की  ढलान  पर रह -रह  के जो  लुढ़क  रहा  होगा
       चाह   कर   भी  जो  दो   कदम  न   चल  सका  होगा 

      एक  लाठी  के  सहारे  भी  जो  चल  न  पा  रहा  होगा 
      चाह  कर  भी  बगल से  लाठी जो न  उठा सका होगा 
    
       हो  खामोश  घर  के  कोने में  कहीं  तड़प  रहा  होगा 
       कोशिशे  लाख की  होंगी  पर बहार आ न सका होगा

       ख्वाहिशे  कहने  की  सीने में दबा बुद- बुदा रहा होगा
       गैरों   से क्या अपनो से  डर  कुछ  कह न सका होगा        

        वो हम सब के घरों में रोता  बेबस  बुढ़ापा रहा होगा
        छुप -छुप के भी बेचारा जो कोने में रो न सका होगा

                                                       मधु "मुस्कान "
     

8 टिप्‍पणियां:

  1. वो हम सब के घरों में रोता बेबस बुढ़ापा रहा होगा
    छुप -छुप के भी बेचारा जो कोने में रो न सका होगा

    ...बहुत मर्मस्पर्शी रचना..अंतस को छू गयी...

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  2. बहुत संवेदनशील रचना -बहुत सुन्दर
    latest postऋण उतार!

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  3. कहाँ थी आदरेया-
    सब कुशल है ना-
    आभार सुन्दर रचना के लिए-

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  4. "गैरों से क्या अपनो से डर कुछ कह न सका होगा"

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  5. एकदम सटीक और सार्थक प्रस्तुति आभार

    बहुत सुद्नर आभार अपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    एक शाम तो उधार दो

    आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे

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